बचपन का भोलापन
दो छोटी बच्चियाँ
आज बहुत खुश थीं।
अपने विद्यालय की विशेष प्रार्थना सभा में उन्हें नृत्य करना था।
दोनो बालिकाएँ
बड़ी सजी-धजी
मुश्किल से अपना घाघरा संभाले चल रही थीं। चेहरे पर ऐसी खुशी थी कि पूछो मत. उन्होंने भारी घाघरा पहना हुआ था. तभी एक का पैर उसके घाघरे में उलझ गया
और वह गिर गई। दूसरी बच्ची ने उसे तुरंत संभाला, उठाया और पास ही सीढ़ियों पर बिठा दिया।
पहली बच्ची गिरने के बाद डर गई थी। वह लगातार रोए जा रही थी। दूसरी बच्ची उसे कई तरह से समझाने का प्रयत्न कर रही थी। तभी
दूसरी लड़की ने कहा, " पता है, मैं भी एक बार ऐसे ही गिर गई थी। " पहली बच्ची रोना भूलकर उसकी ओर देखने लगी। दूसरी बच्ची ने कहा ,"ऐसे ही, मैं भी पहले एक बार घाघरा पहने हुए थी और मेरा पैर उसमें उलझ गया था." पहली बच्ची ने पूछा," फिर क्या हुआ ?" दूसरी बच्ची ने कहा ,"कुछ नहीं। मैं
तो नहीं रोई।
मुझे समझ आ गई कि घाघरा थोड़ा लंबा होता है इसलिए उसमें पैर फँस जाने पर गिर जाते हैं । " तब तक पहली बच्ची अपने आंसू पोंछ चुकी थी।
वह अपने पैरों
की ओर देखने लगी। दूसरी बच्ची ने कहा," अब जब भी घाघरा पहनो तो थोड़ा ऊंचा करके चलो, फिर कुछ नहीं होगा।" अब पहली बच्ची
मुस्कुरा उठी. दोनों
ने
अपना घाघरा थोड़ा ऊंचा किया और फिर मुस्कुरा कर चल पड़ी मानो
अभी कुछ हुआ ही ना हो। इसे कहते हैं भोलापन। बचपन। इतनी जल्दी
सब
भूल जाते हैं।
हम बड़े अपनी बात को ,दूसरो की ग़लतियो को क्यों नहीं भूल पाते !
उषा छाबड़ा
20.10.15
सुनें कहानी मेरी आवाज़ में
रेडियो प्लेबैक इंडिया: उषा छाबड़ा की लघुकथा
बचपन का भोलापन
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