Thursday, December 31, 2015

आज .....
जब राकेश घर से निकला
पीछे से मुन्नी बोली,
पिताजी , आज मेट्रो से ऑफिस चले जाओ न ।
आज .....
जब रानी घर से बाजार के लिए निकली
मोनू ने आवाज़ लगाई
दादी, थैला घर से ही ले जाओ न ।
आज .....
जब रोहित पेड़ की तरफ बढ़ा
पास के मकान से आवाज़ आई
अंकल , पेड़ को मत काटो न ।
आज .....
जब गौरी ने पटाखों के लिए ज़िद की
पास खड़े आदि ने कहा,
बहन , बहुत हुआ धुआँ बस करो न ।
आज .....
जब मैं रात को घर से टहलने के लिए निकला
मंटू ने पीछे से आवाज़ लगाई
दादाजी , छिलके वाली मूंगफली घर आ कर ही खाओ न ।
आज .....
जहाँ बच्चों ने आगे की पतवार थाम ली है
मन आश्वस्त है,
ज़िम्मेदार बच्चे हमारी तरह भूल नहीं करेंगे
हमने तो अंजाम देख ही लिया है,
यह बच्चे अब और बर्बादी नहीं सहेंगे.
विकास की दौड़ में हम जो नुकसान कर बैठे
बच्चे उसे वहीँ से नई दिशा देंगे.
हमारी गलतियों को अपने ज्ञान से सँवारेंगे,
हाँ , सुनहरा सवेरा होने को है
नए वर्ष में उम्मीद की नई किरण जगी तो है.
उषा छाबड़ा
नया वर्ष , अपनी गठरी में क्या लेकर आएगा? सभी के मन में यह प्रश्न बार - बार आता है। 
नए साल में फिर से हम सब नई स्फूर्ति, नई उमंग, नए जोश ,नए संकल्प से भर जाते हैँ। बीती बातों को भुला, फिर से नए तार जोड़ते हुए नए जीवन की ओर बढ़ चलते है। ऐसा भी क्या नया हो जाता है? एक रात में क्या सब कुछ बदल जाता है? यह तो बस मन की बात है। वास्तव में हम एक साल के कुछ अनुभव और समेट लेते हैं, और परिपक्व हो जाते हैं ,जो गलतियाँ की उनसे कुछ सीख लेते हैं, निराशा हाथ लगी तो आने वाले दिनों की ओऱ उम्मीद से ताकते हैं।सब कुछ ठीक जाएगा , इसी सोच से फिर आगे बढ़ने की हिम्मत जुटाते हैं। 
उम्मीदों और आशाओं से भरकर आइये इस नए वर्ष का जोरदार स्वागत करें , कुछ नया सीखें, कुछ नए मित्र बनाएँ , कुछ और सृजन करें, अपनी मुस्कान से कुछ और दीप जलाएँ। ख़ुशियाँ बाँटें और बटोरें। 
उषा छाबड़ा

Saturday, December 26, 2015




मेरी कहानी नंदन के जनवरी  २०१६ के अंक में छपी है. अपार आनंद। 



Tuesday, December 22, 2015


आज मेरी आवाज़ में सुनें

मेरे द्वारा रचित कहानी   "प्रश्न "

http://radioplaybackindia.blogspot.com/2015/12/hindi-urdu-audio-story-by-usha-chhabra.html?spref=fb

22.12.15






उड़ान
वह बड़े चाव से अपनी बहू लेकर आयी थी. बड़े अरमान थे उसके। कहती , "जो मेरे साथ हुआ , वह मैं अपनी बहू के साथ नहीं होने दूँगी। " उसने अपनी बहू को बड़े लाड से पाला। उसे खाना बनाने से भी रोकती। नहीं ,तेरे हाथ आलू छीलने से, साग धोने से काले हो जाएँगे। रुक, तू बच्चों को संभाल ले, मैं रसोई देख लेती हूँ. ऐसी सास पाकर बहू तो धन्य ही हो उठी थी. उसकी सास पढ़ी लिखी थी, अपने मत देती थी. समाचार पत्र हो या कोई कहानी की किताब हर समय उनसे कुछ अच्छा ही सुनने को मिलता. गुरुबाणी जितनी अच्छी तरह पढ़ लेती उतनी ही अच्छी तरह से भजन कीर्तन भी करती. बहू का प्यार भी पाती, तो कभी बहू के गुस्से को भी आराम से सहन कर लेती. आखिर उसने उसे अपनी बेटी ही तो माना था. बहू की यह सास वाकई एक मिसाल थी जिसके गुणगान करते बहू भी कभी न थकती. बहू जब काम करके लौटती तो गरम रोटियां भी बनाती, उसकी मनपसंद दाल , सब्जी का भी ध्यान रखती.बहू की शिकायत पर बेटे को भी डाँट लगाती।
बहू सोचती , उसकी सास तो इन धारावाहिकों वाली सासों से अलग है. .अपनी बहू के करियर के बनाने में वही तो नींव बनी थी. आज उसकी बहू इतना नाम कमा रही है और उसकी सास अपनी बहू की सफलता में , अपनी उड़ान देखकर खुश है. हाँ ,जो उसके साथ हुआ उसने अपनी बहू के साथ वह नहीं होने दिया. उसने अपना वाद पूरा किया.
उषा छाबड़ा

22.12.15





















Thursday, December 10, 2015

नवंबर के अंक में मेरी कहानी छपी है जो मुझे आज मिली है।