Thursday, May 26, 2016

मेरा सफ़र
आज का दिन कुछ खास है . मुझे आप सब को बताते हुए अत्यंत हर्ष हो रहा है कि आज मेरी वेबसाइट लॉन्च हुई है www.ushachhabra.com  और इसमें मेरी मदद की है मेरी पुरानी छात्रा इप्सा अरोरा ने
इस वेबसाइट पर मेरे कामों का पूरा लेखा-जोखा है जिसका  सबसे पहले मेरे माता-पिता को श्रेय जाता है जिन्होंने मुझे पढ़ाया- लिखाया , इस लायक बनाया कि मैं आज समाज को भी कुछ देने लायक बनी हूँ फिर श्रेय जाता है मेरे ससुर जी का, मेरी सास का जो हमेशा मेरा हौसला बढ़ाते रहे मेरे बच्चे हर समय मेरे हर काम में सहायता करने के लिए तत्पर रहे मेरे पति ने हर वक्त, हर पल मेरे हर काम में हाथ बँटाया , ताकि मैं अपने सपनों को पूरा कर सकूँ , अपनी मंजिल पा सकूँ
मैंने सोचा था कि विद्यालय जाकर बच्चों को कुछ सिखाऊँगी , उल्टा उनसे  सीखती चली गई मैं संकोची स्वभाव  की थी, लेकिन समय- समय पर अलग -अलग कार्यभार दिए जाने के कारण मेरा व्यक्तित्व बदलता गया जिसने स्वयं कभी कोई नाटक पहले नहीं किया था वह बच्चों को नुक्कड़ नाटक सिखाने लगी  मेरे विद्यालय की  दोनों पूर्व प्रधानाचार्या , पूर्व उपप्रधानाचार्या , सहयोगियों ने मुझपर  विश्वास रखा और  मैं सीढ़ी दर  सीढ़ी  चढ़ती गई प्रकाशकों का साथ मिला तो लेखन के दुनिया में कदम रखा , धीरे- धीरे फेसबुक पर आई. फेसबुक के मित्रों से मैंने कितना सीखा मैं बता नहीं सकती फिर ब्लॉग बनाया  और अब अपनी वेबसाइट यही कहना चाहूँगी कि सफ़र का आरम्भ कैसे हुआ , पता नहीं, अंत कैसे होगा पता नहीं , परन्तु अभी सफ़र के दौरान बहुत कुछ करना शेष है.
Miles to go before I sleep
Miles to go before I sleep
उषा छाबड़ा

२६.५.१६ 

Wednesday, May 25, 2016

                                बच्चों की किताबें कैसी हों
एक  दिन मैं अपने विद्यालय के पुस्तकालय में बैठी हुई थी वहां कक्षा तीसरी के बच्चे भी आए हुए थे पुस्तकालय की  अध्यक्षा ने उन्हें कुछ वर्कशीट करने को दी थी मैंने भी एक वर्कशीट से ले ली और मैं उसके प्रश्नों को देखने लगी फिर मैंने बच्चों की ओर  देखा वे  सभी उसे बड़ी प्रसन्नता से कर रहे थे , उन प्रश्नों के उत्तर  बड़े आराम से लिख पा रहे थे उसके बाद पुस्तकालय अध्यक्षा ने  उन प्रश्नों पर चर्चा की और मैं यह देख कर हैरान थी कि बच्चे कितनी उत्सुकता से उनका  जवाब दे रहे थे ये  सभी प्रश्न अंग्रेजी की कहानियों की किताबों से संबंधित थे बच्चे उनके पात्रों से कितने वाकिफ थे
चाहे वह सिंड्रेला की कहानी हो या पिनोकियो की, गुलिवर ट्रेवल की हो या फेमस फाइव की . science fiction में भी वे कितना अच्छा लिखते हैं । छोटे बच्चों  के पिक्चर बुक , फोनेटिक्स की किताबें , बच्चों की किताबों में भी कितनी श्रृंखलाएं उपलब्ध हैं । कक्षा छठी के बच्चे हैरी पॉटर की पूरी श्रृंखला पढ़ जाते हैं
 मैंने सोचा कि अगर यही वर्कशीट हिंदी में बनाई होती तो मैं कौन से प्रश्न देती बच्चे हिंदी भाषा में पौराणिक कहानियों के पात्रों  या शेख़चिल्ली , तेनालीराम, बीरबल या प्रेमचंद की कहानियों के इक्के दुक्के  पात्रों के अलावा किसे जानते होंगे जो इतने प्रसिद्ध हुए होंगे !
मेरे घर में भी हिंदी की कई कहानियों की किताबें  , पत्रिकाएँ  हैं पर जब भी बच्चों के सामने किताब पढ़ने को कहती तो हिंदी के बदले वे  अंग्रेजी की उठाना अधिक पसंद करते पूछने पर उन्होंने बताया कि जिस तरह की किताबें अंग्रेजी में है , उनके चित्र सुंदर है ,उनकी भाषा, इसकी कल्पना की दुनिया कितनी सुंदर तरीके से बयान होती है हिंदी में ऐसा नहीं दिखता हम कितनी भी कोशिश कर लें फिर भी  हम कविताओं एवं कहानियों में नैतिक बातें डाल देते हैं जो बच्चों को अच्छी नहीं लगती उनकी दुनिया कल्पना की दुनिया है, जादू की दुनिया है , हम वहां तक पहुंच नहीं पातेइसलिए आज जब हिंदी की पुस्तकों की बात आती है तो समझ नहीं आता कि बच्चे के  अभिभावक को किन किताबों की सूची दे किशोरों के लिए भी कोई ऐसी किताब नहीं समझ आती है जो बहुत प्रसिद्ध हुई हूं प्रेमचंद की कहानियों को  अभिभावक पसंद करते हैं, उन्हें खरीदकर भी दे देते हैं ,लेकिन बच्चे उसे पढ़ना पसंद नहीं करते क्योंकि समय ,काल ओर परिवेश में अंतर आ चुका है
मुझे लगता है कि अगर प्रकाशक picture book में पैसा लगाएं, अच्छे , आकर्षक चित्र बने हों, नए लेखकों  को मौका दिया जाए , बच्चों की  सोच को समझा जाए , marketing strategy  अपनाई जाए तो स्थिति में सुधार हो सकता है। क्लिष्ट भाषा के बदले सरल एवं  चित्रात्मक भाषा का प्रयोग होना चाहिए।  यह एक बहुत बड़ी चुनौती है जिसे हम सब को समझना होगा
मुझे चाहिए वह किताब
मुझे चाहिए वह किताब ,
जिसमें हों प्रकृति के सुन्दर दृश्य,
जहाँ मैं कल्पना के घोड़ों पर बैठ दूर- दूर जा सकूँ ,
जो मेरे मन में प्रश्न उत्पन्न करे, 
जहाँ ज्ञान हो, 
विज्ञान हो, 
आनंद हो,
समस्याएँ हों ,
समाधान हों ,
कहानियाँ जो परियों की हों ,
कहानियाँ जो वैज्ञानिकों की हों, 
कहानियाँ जिनमें दादा- दादी हों ,
कहानियाँ जिनमें नाना- नानी हों ,
कहानियाँ जो रिश्तों की हों ,मित्रों की हों ,
कहानियाँ जो मेरी दुनिया की हों ,
जहाँ कंप्यूटर और इंटरनेट की बातें हों ,
मोबाइल हों , आई पैड हो , रॉकेट हों,
तो साइकिल हों , फूल हों , पौधे हों, पक्षी भी हों ,
ऐसी किताब जो मेरी दुनिया को जाने ,
ऐसी किताब जो मुझे समझे।
उषा छाबड़ा

www.ushachhabra.com

Saturday, May 21, 2016

चलना ही जिंदगी  है ( ७ ) 
                                       इस सप्ताह के सुविचार -----


  • अपने काम में मन लगाने से वह काम , काम नहीं रहता . वह खेल बन जाता है.
           जीवन में ख़ुशी तभी है जब इस खेल में हम रम जाएं.



  • आपकी ज़िन्दगी का हर एक पल एक कहानी का हिस्सा है. कहानी कैसी होगी ,यहआप पर निर्भर करेगा. अपनी कहानी अर्थपूर्ण बनाने का प्रयास करें.




  • दिल में कुछ कर गुजरने की तमन्ना रखें 
           रास्ते खुद -ब - खुद बनते जायेंगे .



  • पल -पल यह ज़िन्दगी कुछ नए रंग दिखाती है , आइये हम भी अपनी आदतों में कुछ नया शामिल करें, कुछ अच्छे बदलाव की ओर कदम बढाएं.



  • हम अपनी सोच से ही निर्मित होते हैं, जैसा सोचते हैं वैसे ही बन जाते हैं। जब मन शुद्ध होता है तो खुशियाँ परछाई की तरह आपके साथ चलती हैं ।   - गौतम बुद्ध

  • जिस प्रकार नदी अपना रास्ता बना ही लेती है चाहे कितनी ही बाधाएं आयें, उसी प्रकार मनुष्य भी बाधाएं पार करने की हिम्मत रखता है और अपना रास्ता बना लेता है.
उषा छाबड़ा
२२.५.१६
                         आखिर क्यों और कब तक?
बच्चे के जन्म लेते ही उसके माँ बाप को बहुत प्रसन्नता होती है। चाहे गरीब हो या अमीर , हर माता -पिता अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा देने की कोशिश करता है।माँ उसे भोजन खिलाते वक्त या खाली वक्त में नर्सरी राईम या छोटी- छोटी बातें बताती है जैसे क से कबूतर  ए से एपल । मेहमान के सामने बच्चे के मुँह से जब अंग्रेज़ी की कविताएँ निकलती हैं तो अभिभावकों का सिर गर्व से ऊँचा उठ जाता है। उन्हें इस बात की संतुष्टि होती है कि उनके  बच्चे की  शिक्षा सही ढंग से हो रही है। पर एक चिंता हर पल सताती रहती है कि बच्चे का दाखिला किस विद्यालय में होगा ! वह विद्यालय कैसा होगा ! आजकल बच्चे के दाखिले के लिए इतनी जद्दोजहद करनी पड़ती है !   बच्चे के माँ - बाप उसके दाखिले को लेकर हर समय तनाव में रहते हैं और अनजाने ही यह तनाव बच्चे तक पहुँचने लगता है। कई बार अपने मनपसंद के अच्छे विद्यालय में दाखिला न मिलने पर उनका मन कुम्हला जाता है। मन मारकर भी उसे उस विद्यालय में भेजते हैं इस सोच में कि शायद बाद में इसका कोई तोड़ निकल आएगा।
धीरे धीरे बच्चा बड़ा होता है । स्कूली प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने लगता है। मा- बाप के कान यह सुनने को आतुर रहते हैं कि उनका बच्चा आज की प्रतियोगिता में जीत कर आया है। कितने प्रतिभागी थे , उनके बच्चे ने कौन- सा स्थान प्राप्त किया इत्यादि कई प्रश्नों की बौछार बच्चे पर की जाती है।उनके चेहरे पर छाई मुस्कराहट से ऐसा लगता है कि जैसे कि उनके बच्चे ने वाकई कोई बड़ी ज़ंग जीत ली है।बच्चे को भी पता चलने लगता है कि जीवन में हर वक्त एक दूसरे को मात देकर ही सफलता प्राप्त की जा सकती है।
बच्चा जब तक आठवीं कक्षा तक पहुँचता है अभिभावकों के साथ उसे यह लगने लगता है कि विज्ञान और गणित  ही वो विषय हैं जो उसे सफलता के द्वार तक पहुँचा सकते हैं।  इंजीनियरींग या मेडिकल की पढ़ाई ही अच्छा भविष्य बना सकती है।लक्ष्य बच्चे के व्यक्तित्व का विकास न होकर यह रहता है कि अच्छे कोचिंग इंस्टीट्यूट में अधिक से अधिक समय बिताए।उसकी बढ़ती उम्र जिसमें मनोरंजन एवं खेलकूद का विशेष स्थान होना चाहिए, उसमें सिर्फ बारहवीं की परीक्षा के परिणाम और आगे की दाखिले की प्रक्रिया हावी हो जाती है। ऊँचे अंक लाने वाले बच्चों को भी यह डर सताता रहता है कि उनका दाखिला अच्छे कालेज में हो पाएगा कि नहीं। उन बच्चों एवं उनके अभिभावकों  की  मानसिक स्थिति का क्या बयान किया जाए जिनका परीक्षा परिणाम औसत आता है।

कई संपन्न परिवार के बच्चे तो आठवीं से ही बाहर विदेशों में पढ़ाई करने का मन बना लेते हैं ।कई अभिभावक तो बच्चे के सुनहरे भविष्य के लिए शिक्षा संबंधी लोन लेकर विदेश भेजने की तैयारी में जुट जाते हैं।अपने कलेजे के टुकड़े को कलेजे पर पत्थर रख इतनी दूर पढ़ने के लिए भेज देते हैं।अपने माता- पिता के प्यार से वंचित बच्चा एक नए वातावरण में अपने को बारज्ञ बार समझाने की कोशिश करता है कि पढ़ाई पूरी करने पर उसे एक अच्छी नौकरी मिल जाएगी और वह लोन उतार पाएगा।अच्छी नौकरी एक मृगतृष्णा के समान लुभावनी तो होती है पर बच्चा अब बुरी तरह उसके जाल में फँस चुका होता है। माँ- बाप अपने बच्चे से दूर सिर्फ उसके अच्छे स्वास्थ्य एवं
अच्छे करियर की ही कामना करते- करते बूढ़े हो जाते हैं।अच्छी शिक्षा पाने के लिए बच्चे को जन्म से लेकर बड़े होने तक हम तनाव की सौगात दिए जाते हैं।
एक ओर हम सब जीवन में तनाव कम करने की बातें करते हैं और दूसरी तरफ उसे बढ़ाने के उपाय किए फिरते हैं।कितनी बड़ी विडंबना है कि हम शिक्षा के अधिकार की बात तो करते हैं पर उसके लिए अच्छे विद्यालय नहीं बनाते। हम ब्रेन- ड्रेन की बात करते हैं पर बच्चों को लिए अच्छे कॉलेज का निर्माण नहीं करते । तनावपूर्ण स्थिति बनाते हैं और फिर तनाव से बचने के उपाय बताते हैं। बजट में शिक्षा के लिए अधिक  प्रावधान क्यों नहीं किया जाता? क्यों नहीं हमारे विद्यालयो  की गुणवत्ता को बढ़ाया जाता ? क्यों नहीं उनके मापदंड को बदला जाता?  क्यों अच्छे विद्यालय की खोज में अभिभावक को लगना पड़ता है ? क्यों नहीं सभी विद्यालयों को अच्छा बनाने का प्रयास किया जाता ? क्यों नहीं कॉलेजों में सीटें बढ़ाई जातीं ? क्यों  हम विदेशी स्कूलों एवं कॉलेजों के गीत गाते फिरते हैं ? स्वतंत्रता के इतने वर्षों बाद भी हम क्यों अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा से वंचित रखने को मजबूर हैं ? आखिर क्यों? और कब तक?                              
                उषा छाबड़ा
         २१.५.१६ 

                

Thursday, May 19, 2016


Enjoy the audio story अम्मा in my voice at the given link.

Monday, May 16, 2016



आप पहले ही ताक धिना धिन पुस्तक का एक बालगीत 'छुट्टीआई ' सुन चुके हैं.
नीचे लिखे लिंक पर आइये सुनते हैं , ताक धिना धिन पुस्तक का अगला बालगीत
'चलो चलें हम चिड़िया घर' -...
https://youtu.be/SokWzF-JK58

१६.५.१६

 चलना ही जिंदगी  है (६ ) 
                                       इस सप्ताह के सुविचार -----

  •     जीवन के आने वाले पलों की मृगतृष्णा में न रहकर , अभी ,इस पल के आनंद में सराबोर हो लें।

  • समय बड़ा होताहै, मनुष्य नहीं,समय अनुसार परिस्थितियाँ बदलती हैं ,इसलिए सही समय का इन्जार करना ही अच्छा है .

  • चाहे कैसी भी परिस्थिति हो ,अपना विश्वास बनाए रखें।

  • परिवार में सबका व्यवहार अलग होता है, सबका अपना मान -सम्मान होता है . हर एक सदस्य का अलग महत्त्व होता है . सबसे ताल-मेल बैठाकर , प्यार से रहना ही तो ज़िन्दगी है .

  • जिस भी काम को करें ,उसे पूरे जुनून से करें । उसके पूरे होने का आनंद ही अलग 
  • १६.५.१६

Monday, May 9, 2016

चलना ही जिंदगी  है (५ ) 
                                       इस सप्ताह के सुविचार -----


  • कोई दूसरों का हक छीनकर ख़ुशी पाता है, कोई अपना सब कुछ दूसरों पर लुटाकर ख़ुशी पाता है. सबके लिए ख़ुशी के अलग मायने हैं

  • क्या मिला यह न सोचें, क्या दिया यह सोचें 

  • मस्त शीतल हवा बनें। प्रसन्नता फैलाएँ।


  • अपने ऊपर विश्वास रखें. कोई साथ न दे , तो अकेला चलने की हिम्मत रखें 

           ९.५.१६ 

Thursday, May 5, 2016



मेरी प्यारी माँ –
मीनू आठ साल की बालिका है। वह हर समय अपनी माँ के बारे में सोचती रहती है। उसके मन में ढेरों सवाल आते हैं। अपनी डायरी से वह ढेरों बातें कर लेती है।
मुझे तो नींद इतनी प्यारी लगती है पर माँ को? जब सब सो रहे होते हैं तो जाने कैसे माँ इतनी सुबह उठ जाती है। सुबह से ही कितने काम कर लेती है। पता नहीं माँ ने इतना काम करना कैसे सीखा ! खाना भी इतना स्वादिष्ट बनाती है कि पूछो मत। टिफिन खोलते ही मेरी तो सहेलियां ही सब चट कर जाती हैं। अखबार में जाने क्या-क्या लिखा होता पर मेरी माँ को तो सब पता होता है। कितना कुछ जानती है माँ! मेरा होमवर्क करना हो या क्राफ्ट का कोई काम हो माँ तो मेरे साथ बैठकर सब करवा देती है। मेरी छोटी बहन जब से हुई है मेरी माँ और भी व्यस्त हो गयी है। मुझे कभी-कभी अपनी बहन पर गुस्सा भी बहुत आता है, पर सच बताऊँ तो उससे ज्यादा प्यार भी आता है। माँ तो पता नहीं कैसे इतनी थकी होने पर भी हम दोनों से इतना प्यार कर लेती है। मुझे तो ढेरों कहानियाँ सुनाती है माँ।
मेरी बहन को तो कुछ समझ नहीं आता फिर भी वह मुस्कुराती रहती है। माँ तो ऑफिस में काम भी करती हैं। इतनी लम्बी साड़ी जाने कैसे पहन लेती है। कई बार सूट भी पहन लेती है पर मुझे वो साड़ी में बहुत सुन्दर लगती है। माँ के पास भी तो दो हाथ हैं पर वो तो ढेरों काम जाने कैसे कर लेती है। मैं भी माँ को खुश रखती हूँ। उन्हें कभी तंग नहीं करती। जो काम मुझसे होता है उन्हें मैं कर लेती हूँ जो नहीं आता माँ से पूछ लेती हूँ। अपना बस्ता लगाना, अपने जूते पोलिश करना। अपने खिलौनों से खेलने के बाद उन्हें समेटकर रख देती हूँ। अपने छोटे छोटे काम खुद कर लेती हूँ । माँ की बेटी हूँ न।
मैं भी बड़े होकर माँ जैसे ही बड़ी अफसर बनूँगी। कभी नहीं थकूंगी। माँ बहुत अच्छी है । पापा तो हैं नहीं , पर माँ मुझे उनकी कमी महसूस नहीं होने देती। मेरी माँ बहुत प्यारी है न मेरी डायरी ।
उषा छाबड़ा
82, जुपिटर अपार्टमेंट्स
डी ब्लॉक विकासपुरी
नई दिल्ली 110018
मोबाइल – 9899724872
नव-अनवरत डॉट कॉम 
5.5.16


Sunday, May 1, 2016




              चलना ही जिंदगी  है (४) 
                                       इस सप्ताह के सुविचार -----


  • कौन क्या बोलता है, इसकी परवाह न करें . मैं क्या कर रहा हूँ / रही हूँ ,मैं कितना सही हूँ , इस बारे में सोचें. आपकी आत्मा ही सच्ची गवाही देती है.

  • हर दिन खूबसूरत होता है .हमें ईश्वर की ओर से काम करने केलिए एक और दिन उपहार स्वरूप मिलता है. इसकी कद्र करें .

  • अपने संबंधों को मधुर बनाएं. खुशियाँ बिखेरें ख़ुशी पाएं .

  • ख्वाब अवश्य देखिए । एक न एक दिन ये हकीकत में अवश्य बदलेंगे।   

  • ज़िन्दगी की असली कमाई आपके द्वारा खड़े किये गए आलिशान मकानों में नहीं है , असली कमाई तो आपके द्वारा लोगों के दिलों में बनाए आशियानों में है.