सम्भावनाएँ
अभी हाल ही में
मेरी मुलाकात ‘चेतना’ नामक गैर सरकारी संस्था के बच्चों से हुई। ये बच्चे अधिकतर
सड़कों पर रहते हैं। ये
कूड़ा बीनने का काम करते हैं ,
पुरानी बोतलें उठाते हैं ,कई बच्चे कारें धोने का काम भी करते
हैं। इनमें से आज दो बच्चों की कहानियों आपके
सामने रख रही हूँ ।ये कहानियाँ आपको
अधूरी लगेंगीं , अधूरी इसलिए कि उन्होंने अपने जीवन का सफ़र अभी तय
करना है।
पहला बच्चे की
कहानी कुछ इस प्रकार है - वह बच्चा इस
संस्था के संपर्क में बचपन में ही आ गया था। आज वह बच्चा
पढ़ाई का बेसिक कोर्स कर रहा है और
पाँचवीं कक्षा में है। उस बच्चे की आँखों
में पढ़ाई के प्रति आकर्षण देखते ही बनता है।
वह भविष्य में सेना में भर्ती होना चाहता है । मैंने उसके पास बैठकर उसकी लगन
को महसूस किया और लगता नहीं
कि वह दिन दूर होगा जब वह अपनी मंजिल पा लेगा।
दूसरी कहानी है
एक ऐसे बच्चे के बारे में जो बचपन में
अपने पिता के साथ एक होटल में काम करता था।
इसके पिता आज भी एक होटल में तंदूर में रोटी लगाने का कार्य कर रहे हैं। जब यह
छोटा - सा था ,तब चेतना संस्था
के संपर्क में आया। वह बर्तन मांजकर थोड़ी देर के लिए उनके संपर्क स्थान पर जाता , उनसे पढ़ता। आज यह बच्चा बड़ा हो चुका है ,दसवीं में ओपन स्कूल से पढ़ाई कर रहा है। यह 'बालकनामा' समाचार पत्र
का रिपोर्टर है। इसे संस्था की ओर से कैमरा भी
दिया गया है। वह सड़क पर रह
रहे बच्चों से मिलता है, उनकी समस्याओं को सुनता है वह अपनी कॉपी में
इनके बारे में लिखता है , उन बच्चों के समाचार इकठ्ठा करता है और इन
बच्चों की बातें अपनी अखबार में रिपोर्ट
करता है. वह कंप्यूटर का बेसिक कोर्स कर
रहा है। उसे टाइप करना भी आ गया है। यह शाम को बच्चों की फ्री ट्यूशन भी लेता है। उसके चेहरे पर हँसी और मुस्कान रहती है और आँखों में कुछ कर दिखाने
की चाहत दिखाई देती है।
ये कहानियाँ संभावनाओं से परिपूर्ण हैं। कुछ समय और बीतने
पर इनका जीवन अवश्य ही सुंदर आकार ले
लेगा। ऐसे अनेक बच्चे हैं जो सड़कों पर रहते हैं। उनकी कहानियाँ भी अधूरी है और यह चेतना संस्था उनके सपनों को साकार करने की कोशिश में जुटी हुई
है। कई बच्चे ऐसे भी हैं जिनके सपनों को पंख मिल चुके हैं एवं वे ऊँची उड़ान भर रहे
हैं।
अंत में यही कहना
चाहूँगी कि हम सम्पन्नता का जीवन जी रहे हैं फिर भी शिकायतों की गठरी ढोते रहते हैं।
इन बच्चों से मिलिए- ये अभावों में
जी रहे हैं पर सुनहरे ख्वाबों को नहीं छोड़ रहे, ज़िन्दगी से इन्हें
काफी उम्मीदें हैं. आइए इन गौरैयों को बचाने का प्रयास करें, इनके पंखों को कौशल की शक्ति मिले जिससे ये भी
ऊँची उड़ान भर पाएँ।
उषा छाबड़ा
6 comments:
आपकी कहानी और आप, मुझे दोनों में अपार संभानाएं नजर आती हैं |हम सभी एकजुट होकर नियोजित तरीके से काम करें तो परिणाम और भी सुखाकर होंगे | साधुवाद अच्छी सोच और काम के लिए
बीना
it is very nice and your videos
हार्दिक धन्यवाद , बीना जी।
Thank you Kareena.
Thank you Kareena.
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