Monday, March 21, 2016

World Poetry Day

सफ़र
अ – आ-- से होते हुए
क—ल—ज-- ट --से --ज्ञ तक
के अक्षरों में ही सिमट जाते हैं मेरे भाव
जाने कब ये अक्षर
भावनाओं के संग अठखेलियाँ कर
शब्दों की ओढ़नी पहन
कविता में बदल जाते हैं --
जाने क्यों
ये शब्द इतने बेचैन क्यों हो उठते हैं
कविता छटपटाती है
आतुर पागल कविता --
कलम कागज का साथ पा
बस बह चलती है कविता ---
सफ़र पूरा होते ही
सब शांत हो जाता है
उठती लहरें जैसे तट पर आकर
खामोश हो जाती हैं .
उषा छाबड़ा
२१.३.१६

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