राष्ट्रीय विज्ञान दिवस
नई पीढ़ी के लिए विज्ञान शिक्षण
कल्पना के रंगों को पंख देता है
विज्ञान
आदमी की सोच को विस्तार देता है विज्ञान
प्रगति के पथ को प्रशस्त करता है विज्ञान
जिन्दगी के रहस्यों को अर्थ देता है
विज्ञान ।
विज्ञान हमारे जीवन का एक सुंदर एवं अभिन्न अंश बन गया है । इसके बिना तो जैसे जीवन ही
अधूरा है । सुबह से लेकर रात होने तक ऐसी कितनी वस्तुओं का प्रयोग
करते हैं जो विज्ञान ने हमें प्रदान की हैं । विज्ञान ने हमारी जिंदगी को सुंदर व आसान बना दिया है ।
अभी भी कई अनसुलझे रहस्यों पर पर्दा
पड़ा हुआ है और इस तरफ बहुत प्रयास हो रहे हैं , यह अच्छी बात है । आजकल कई बच्चे अपनी ओर से इस विषय की ओर रूचि
दिखाते हैं, छोटी उम्र में भी कई कुछ खोज कर रहे हैं, परन्तु यह पर्याप्त नहीं है ।
विज्ञान को रुचिकर बनाना ही पहला कदम है । विज्ञान को तो दिनचर्या की हर छोटी चीज से जोड़ा
जा सकता है । प्राथमिक कक्षाओं के शिक्षकों और छोटे बच्चों के अभिभावकों
पर इस बात की अधिक जिम्मेदारी है कि वे
आने वाली पीढ़ी को इस की ओर आकर्षित करें ।
कक्षा नर्सरी से ही बच्चों में मौजूद जिज्ञासा को बढ़ावा देना चाहिए, उन्हें अधिक से अधिक बगीचे की सैर करानी चाहिय्रे । उनके मन में उठने वाले
प्रश्नों को डाँट -डपट कर बंद नहीं कर देना चाहिए । उन्हें रंगबिरंगी
किताबें देनी चाहिए जिनमें जीव जंतुओं के चित्र हों , राकेट हों,
एस्ट्रोनॉट आदि हों । कविताओं एवं कहानियों के माध्यम से
विज्ञान के सरल तथ्यों को बच्चों तक पहुँचाना चाहिए ।
कक्षा तीसरी से पाँचवीं तक आते- आते उन्हें कक्षा में हलके -फुल्के प्रयोग दिखाने की छूट देनी
चाहिए जैसे कि उबले अंडों और कच्चे अंडों
को आप आसानी से कैसे बाहर से ही पहचान सकते हैं , अगर तीन गिलासों में समान मात्रा में पानी भरा हो ,तो हम उनमें अंडों को अलग अलग सतह पर कैसे
रख सकते हैं, कौन सी वस्तुएँ पानी में तैरेंगी, कौन सी डूबेंगी, कौन- सी वस्तुएँ चुम्बक द्वारा आकर्षित
होंगी , सात रंगों को हम सफ़ेद रंग में कैसे देख सकते हैं आदि छोटे छोटे कई रोचक
प्रयोग हैं जिन्हें बिना किसी डर के बच्चे अपने स्तर पर कक्षा में दिखा सकते हैं ।घर पर भी अभिभावक
ऐसे प्रयोगों को बढ़ावा दे सकते हैं।
हर तथ्य को करके दिखाने की कक्षा होनी चाहिए। किसी भी वस्तु को
सूक्ष्मदर्शी यन्त्र के नीचे रख कर देखने
की छूट देनी चाहिए, जैसे विभिन्न प्रकार के कपड़ों के टुकड़ों को जब आप
सूक्ष्मदर्शी यन्त्र के द्वारा देखते हैं
तो आप हैरानी से भर उठते हैं , कितने रोचक दिखतें हैं ये । इसी प्रकार पक्षियों के पंख, फूलों की पंखुड़ियाँ आदि। किताबी ज्ञान से
परे की दुनिया उन्हें दिखानी चाहिए ।
कक्षा में कभी कभी खोजों पर, वैज्ञानिकों
पर, ग्रहों आदि अन्य विषयों पर चर्चा, प्रश्नोतरी आदि का आयोजन होना चाहिए। कभी- कभी समाचार पत्र में आये पर्यावरण संबंधी
समस्यामूलक विषयों पर बातचीत करनी चाहिए ।
परीक्षा के प्रश्न रटंत विद्या पर आधारित न होकर उनकी नई सोच, उनकी
सृजनात्मकता को बढ़ावा देने वाले होने चाहिए। कुछ छोटी- छोटी पुरानी चीजों को आपस में जोड़कर नया बनाने के लिए प्रेरित करना चाहिये । बेसिक किताबी ज्ञान अवश्य होना चाहिए परन्तु प्रोजेक्ट आधारित
शिक्षा होनी चाहिए। आज ऐसे विद्यालयों , ऐसे शिक्षकों ,
ऐसे अभिभावकों की आवश्यकता है जो विज्ञान जैसे सुंदर विषय को बोझिल न बनाएँ । बच्चा इस विषय से डरें नहीं , कुछ नया कर दिखाने की उसमें जहाँ हर दिन ललक हो ।
अभिभावकों को भी बच्चों के प्रश्नों से थकना नहीं चाहिए
बल्कि उन्हें अपने बच्चों के साथ उनके उत्तर ढूँढने में मदद करनी चाहिए। बच्चों के
साथ ढेरों बातें करें , उनके साथ बैठकर
विज्ञान संबंधी कार्यक्रम देखें । उन्हें ऐसी किताबें दिलाएँ जिनसे उनकी विज्ञान
के प्रति रूचि जागृत हो।
उषा छाबड़ा
No comments:
Post a Comment