Thursday, May 18, 2017

मंथन

मंथन
कई बच्चे अपनी कॉपी बड़ी सफाई से रखते हैं।  उनके पृष्ठ मुड़े नहीं होते , उनका हर अक्षर सधा हुआ होता है। काम सफाई से किया होता है। जिस तरह कक्षा में समझाया गया होता है , अपेक्षित  उत्तर लिखा होता है।  उत्तर पूरे होते  हैं।  काम पूरा होता है।
कई बच्चों की कॉपियों का रख- रखाव अच्छा नहीं होता।  उनके पृष्ठ मुड़े -तुड़े होते हैं। कभी हल्दी का दाग दिखता हैं तो कभी कोई पन्ना भी बीच में से फटा  दिखता है।  काम सावधानी से नहीं किया होता।  बार -बार गलती करते हैं , उसे काट देते हैं, फिर आगे लिखते हैं , फिर कोई शब्द काट देते हैं।  काम में स्थिरता  नहीं  दिखती।  बार बार  शब्द गलत लिखते हैं।  कई बार अधूरा काम ही जांचने के लिए दे देते हैं।
 
 ऊपर दिए गए दोनों तरह की कॉपियाँ अकसर सामने आती हैं।  अपनी कक्षा में मैं  लगभग १५ बच्चों की कापियां  
 अच्छी श्रेणी में गिन  सकती हूँ ,लगभग  १० कॉपियाँ  ठीक -ठाक हैं , बहुत अच्छी नहीं  और बाकी कापियों का हाल    
 खराब है।
 कापियों को देखकर , जांचते समय कुछ बातें समझ में आती हैं कि 
 बच्चे के घर का वातावरण क्या है ? उसपर कितना ध्यान दिया जा रहा है ? गलती अगर बार- बार दोहराई जा रही है तो या तो बच्चे की समझ में नहीं रही या बच्चा  लापरवाही कर रहा है   और घर पर उसकी पढ़ाई  को देखने वाला   कोई  नहीं है।
छोटी ही उम्र से हमें बच्चों को साफ- सफाई के बारे में बताना चाहिए, यह उसकी आदत में शामिल हो जाना चाहिए।  उसकी यह आदत फिर कॉपियों  में भी दिखाई देगी। कई बच्चों की  लिखने की गति कम है और इसलिए कक्षा में काम पूरा नहीं कर पाते।  अभिभावक  को चाहिए कि  प्रतिदिन जब बच्चा घर जाए तो उसकी कॉपियाँ  देखे, उसकी गलतियों को समझे और  उनपर पर ध्यान दें।  जो गलतियां छोटी कक्षाओं में नजरअंदाज की  जाती हैं  ,  बड़े होकर वही  गलतियाँ  ठीक नहीं हो पाती हैं। 
कई बार पाया गया है कि  बच्चों को वर्णों और मात्राओं का सही ज्ञान बचपन में नहीं हो पाया इसलिए वे बड़े होकर भी कई छोटी छोटी गलतियां करते हैं और वही गलतियाँ बड़ा रूप ले लेती हैं। 
बच्चे से अगर यह उम्मीद की जाती है कि वह अच्छे अंक लाये , तो उसके लिए अभिभावक, छात्र और अध्यापिका के कार्य में सामंजस्य होना होगा।  अध्यापिका का मार्गदर्शन तभी कारगर सिद्ध  होगा , जब अभिभावक  बच्चे पर ध्यान देंगें
अपने बच्चों के लिए समय देना बहुत ही आवश्यक है। समय रहते बच्चे की मदद करें। सीढ़ी एक बार में नहीं चढ़ी जाती , उसके एक- एक पायदान  पर चढ़ते  हुए ही ऊँचाई पर पहुँचा  जा सकता है।

उषा छाबड़ा

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