Thursday, August 25, 2016

नोट
लघु कथा
जन्माष्टमी के उपलक्ष्य में एक माँ अपनी बच्ची को मंदिर लेकर गई। मंदिर सुंदर सजा हुआ था। बच्ची ने दस रुपये का एक नोट नन्हे कृष्ण जी के झूले में डाल दिया और उन्हें झूला झुलाया। वह बहुत खुश थी। उसकी माँ वहीँ बैठ गई। थोड़ी ही देर में बच्ची माँ के पास आई और माँ के पर्स में और पैसे दूँढने लगी। माँ के पर्स में एक दस का, एक सौ का और एक पांच सौ का नोट था। बच्ची ने पांच सौ का नोट पकड़ लिया और वह चढाने के लिए ज़िद करने लगी। माँ घबरा गयी। पाँच सौ का नोट। !! माँ ने कहा ,"अभी तो भगवान जी को चढ़ाया है , अब और नहीं चढ़ाना।" बच्ची ने कहा ," नहीं , दूसरे भगवान जी जो मंदिर में हैं उन्हें चढ़ाना है।" फिर उसे समझाया गया कि जब एक भगवान को चढ़ाया तो सब मिलकर उसी में से आपस में बाँट लेंगे। बच्ची फिर भी ज़िद पर अड़ी हुई थी। माँ उसे फिर पर्स में से दस रुपये का नोट निकाल कर दे रही थी पर बच्ची थी कि राजी ही नहीं हो रही थी। वह पाँच सौ के नोट को ही चढ़ाने पर ही अड़ी हुई थी। माँ को भी उसे मना करने में दिक्कत महसूस हो रही थी और बच्ची थी कि मान ही नहीं रही थी। थोड़ी देर बाद माँ ने उसे डाँटा ," नहीं ,ये नहीं चढ़ाना है। बार बार ज़िद क्यों कर रही हो ? " तभी बच्ची बोल पड़ी ," ये नोट नरम (सॉफ्ट) सा है , मुझे यह नहीं चाहिए। मुझे कड़क (हार्ड) नोट चाहिए।" माँ को अब समझ आई कि बच्ची क्या चाहती थी! असल में बच्ची को कड़क नोट उस पेटी में डालना था । पर्स में सिर्फ पांच सौ का नोट ही कड़क था , इसलिए वह उसे लेने की ज़िद कर रही थी। अब समस्या को कैसे सुलझाया जाए। फिर उसे यह कहा गया कि भगवान जी के झूले में यह नरम वाला दस रुपए का नोट डाल आओ और वहाँ से कड़क नोट ले आओ। बच्ची ने देखा कि एक बूढी महिला ने अभी - अभी एक कड़क दस का नोट झूले में डाला है। उसने जल्दी से अपना नोट झूले में डाला और दूसरा कड़क वाला दस रुपए का नोट उठा लिया। वह ख़ुशी- ख़ुशी दस का कड़क नोट पेटी में डाल आई । अब बेटी भी खुश थी और माँ भी !!!
उषा छाबड़ा
२५. ८. १६

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