Saturday, May 21, 2016

                         आखिर क्यों और कब तक?
बच्चे के जन्म लेते ही उसके माँ बाप को बहुत प्रसन्नता होती है। चाहे गरीब हो या अमीर , हर माता -पिता अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा देने की कोशिश करता है।माँ उसे भोजन खिलाते वक्त या खाली वक्त में नर्सरी राईम या छोटी- छोटी बातें बताती है जैसे क से कबूतर  ए से एपल । मेहमान के सामने बच्चे के मुँह से जब अंग्रेज़ी की कविताएँ निकलती हैं तो अभिभावकों का सिर गर्व से ऊँचा उठ जाता है। उन्हें इस बात की संतुष्टि होती है कि उनके  बच्चे की  शिक्षा सही ढंग से हो रही है। पर एक चिंता हर पल सताती रहती है कि बच्चे का दाखिला किस विद्यालय में होगा ! वह विद्यालय कैसा होगा ! आजकल बच्चे के दाखिले के लिए इतनी जद्दोजहद करनी पड़ती है !   बच्चे के माँ - बाप उसके दाखिले को लेकर हर समय तनाव में रहते हैं और अनजाने ही यह तनाव बच्चे तक पहुँचने लगता है। कई बार अपने मनपसंद के अच्छे विद्यालय में दाखिला न मिलने पर उनका मन कुम्हला जाता है। मन मारकर भी उसे उस विद्यालय में भेजते हैं इस सोच में कि शायद बाद में इसका कोई तोड़ निकल आएगा।
धीरे धीरे बच्चा बड़ा होता है । स्कूली प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने लगता है। मा- बाप के कान यह सुनने को आतुर रहते हैं कि उनका बच्चा आज की प्रतियोगिता में जीत कर आया है। कितने प्रतिभागी थे , उनके बच्चे ने कौन- सा स्थान प्राप्त किया इत्यादि कई प्रश्नों की बौछार बच्चे पर की जाती है।उनके चेहरे पर छाई मुस्कराहट से ऐसा लगता है कि जैसे कि उनके बच्चे ने वाकई कोई बड़ी ज़ंग जीत ली है।बच्चे को भी पता चलने लगता है कि जीवन में हर वक्त एक दूसरे को मात देकर ही सफलता प्राप्त की जा सकती है।
बच्चा जब तक आठवीं कक्षा तक पहुँचता है अभिभावकों के साथ उसे यह लगने लगता है कि विज्ञान और गणित  ही वो विषय हैं जो उसे सफलता के द्वार तक पहुँचा सकते हैं।  इंजीनियरींग या मेडिकल की पढ़ाई ही अच्छा भविष्य बना सकती है।लक्ष्य बच्चे के व्यक्तित्व का विकास न होकर यह रहता है कि अच्छे कोचिंग इंस्टीट्यूट में अधिक से अधिक समय बिताए।उसकी बढ़ती उम्र जिसमें मनोरंजन एवं खेलकूद का विशेष स्थान होना चाहिए, उसमें सिर्फ बारहवीं की परीक्षा के परिणाम और आगे की दाखिले की प्रक्रिया हावी हो जाती है। ऊँचे अंक लाने वाले बच्चों को भी यह डर सताता रहता है कि उनका दाखिला अच्छे कालेज में हो पाएगा कि नहीं। उन बच्चों एवं उनके अभिभावकों  की  मानसिक स्थिति का क्या बयान किया जाए जिनका परीक्षा परिणाम औसत आता है।

कई संपन्न परिवार के बच्चे तो आठवीं से ही बाहर विदेशों में पढ़ाई करने का मन बना लेते हैं ।कई अभिभावक तो बच्चे के सुनहरे भविष्य के लिए शिक्षा संबंधी लोन लेकर विदेश भेजने की तैयारी में जुट जाते हैं।अपने कलेजे के टुकड़े को कलेजे पर पत्थर रख इतनी दूर पढ़ने के लिए भेज देते हैं।अपने माता- पिता के प्यार से वंचित बच्चा एक नए वातावरण में अपने को बारज्ञ बार समझाने की कोशिश करता है कि पढ़ाई पूरी करने पर उसे एक अच्छी नौकरी मिल जाएगी और वह लोन उतार पाएगा।अच्छी नौकरी एक मृगतृष्णा के समान लुभावनी तो होती है पर बच्चा अब बुरी तरह उसके जाल में फँस चुका होता है। माँ- बाप अपने बच्चे से दूर सिर्फ उसके अच्छे स्वास्थ्य एवं
अच्छे करियर की ही कामना करते- करते बूढ़े हो जाते हैं।अच्छी शिक्षा पाने के लिए बच्चे को जन्म से लेकर बड़े होने तक हम तनाव की सौगात दिए जाते हैं।
एक ओर हम सब जीवन में तनाव कम करने की बातें करते हैं और दूसरी तरफ उसे बढ़ाने के उपाय किए फिरते हैं।कितनी बड़ी विडंबना है कि हम शिक्षा के अधिकार की बात तो करते हैं पर उसके लिए अच्छे विद्यालय नहीं बनाते। हम ब्रेन- ड्रेन की बात करते हैं पर बच्चों को लिए अच्छे कॉलेज का निर्माण नहीं करते । तनावपूर्ण स्थिति बनाते हैं और फिर तनाव से बचने के उपाय बताते हैं। बजट में शिक्षा के लिए अधिक  प्रावधान क्यों नहीं किया जाता? क्यों नहीं हमारे विद्यालयो  की गुणवत्ता को बढ़ाया जाता ? क्यों नहीं उनके मापदंड को बदला जाता?  क्यों अच्छे विद्यालय की खोज में अभिभावक को लगना पड़ता है ? क्यों नहीं सभी विद्यालयों को अच्छा बनाने का प्रयास किया जाता ? क्यों नहीं कॉलेजों में सीटें बढ़ाई जातीं ? क्यों  हम विदेशी स्कूलों एवं कॉलेजों के गीत गाते फिरते हैं ? स्वतंत्रता के इतने वर्षों बाद भी हम क्यों अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा से वंचित रखने को मजबूर हैं ? आखिर क्यों? और कब तक?                              
                उषा छाबड़ा
         २१.५.१६ 

                

2 comments:

Smart Indian said...

दुर्भाग्य से समाज में सक्षम लोगों को पीछे करके अक्षम लोग ही हर काम की पर्चम उठाये दिख रहे हैं. शिक्षा भी अन्य व्यवसायों की तरह ही मुनाफ़ाखोरी का स्रोत बन गई है. ज़िम्मेदारी समझना पिछडेपन की निशानी है. सामाजिक जागरूकता की ज़रूरत है.

Usha Chhabra said...

अनुराग जी ,
व्यवस्था चरमराई हुई है , शिक्षा में आमूल परिवर्तन की आवश्यकता है.