मुस्कान
शाम के सात बज रहे थे । सुमित कॉलेज से लौटते समय मेट्रो
स्टेशन पर उतरा और घर जाने के लिए रिक्शे की तलाश करने लगा । तभी पीछे से एक
रिक्शे वाले ने आवाज लगाई , कहां जाना है
भैया ? सुमित ने पीछे मुड़कर देखा । एक 25 - 30 साल का दुबला-- पतला युवक वहां खड़ा था । उसने
सिर पर गमछा था लपेटा हुआ था । सुमित ने पूछा - जनकपुरी चलोगे ?
रिक्शे वाले ने कहा
- जी साहब ।
सुमित ने पूछा - कितने पैसे?
रिक्शे वाले ने कहा - जी, 40 रुपये
।
सुमित आगे बढ़
गया । तभी रिक्शा वाले ने फिर से आवाज़ लगाई- कितना दोगे साहब ?
मेरा तो रोज का
आना जाना है । तीस रुपये दूँगा ।
रिक्शे वाले ने
पहले कुछ सोचा और फिर कह उठा - चलिए, ले चलता हूँ । सुमित
रिक्शे में बैठ गया ।
रिक्शेवाला रिक्शा चलाने लगा । सुमित भी दिन भर
की बातों के बारे में सोचने लगा । उसकी गली के थोड़ा पहले रिक्शा जैसे ही मुड़ने लगा , किसी की आवाज ने उसे चौंका दिया । सड़क पर खड़ा व्यक्ति रिक्शे वाले से कह रहा था – अरे! तुम्हारे रिक्शे
का पहिया बाहर क्यों निकल रहा है? जरा ध्यान से चलाओ । रिक्शे वाले ने एक तरफ झुक कर देखा । हां, उसके पहिए की
के नट बोल्ट कहीं पीछे खुल गए और इसलिए रिक्शे का पहिया बार- बार बाहर निकल रहा था । अब रिक्शेवाला
धीरे-धीरे रिक्शा चलाने लगा । बार-बार उसकी निगाह वहीँ पहुंच जाती । सुमित भी घबरा गया था । वह भी बार-बार पहिए को देख रहा था । कहीं पहिया बाहर आ गया तो ! यह सोचकर वह बहुत डर गया था । घर आने ही वाला था ।
रिक्शावाला मायूस -सा दिख रहा था । सुमित ने पूछा -क्या बात है भैया? रिक्शे वाले ने कहा - क्या बताऊँ भैया! अब इसकी मरम्मत
में भी पैसे लग जाएंगे । वैसे ही दो जून का खाना
मुश्किल से जुटा पाता हूँ , ऊपर से इतना खर्च.! सुमित ने कहा - ठीक तो कराना
ही पड़ेगा भैय्या ।
बातों ही बातों
में सुमित का घर आ गया । सुमित ने कहा - बस
भैय्या , रोक देना । वह रिक्शे से उतरा ओर अपने पर्स में से उसने पैसे निकालकर रिक्शे वाले को दे दिए , उसके कंधे को थपथपाया ।
आँखों ही आँखों में धन्यवाद कहा और घर की ओर बढ़ गया । रिक्शे वाले ने पैसे गिने । चालीस रुपये थे ।
बात तो तीस रुपये
की हुई थी और ये तो चालीस रुपये हैं । उसने
सोचा गलती से दे दिए हैं । वह वापिस करने
के लिए सुमित को आवाज़ लगाने ही वाला था
लेकिन खर्च के बारे में सोचकर चुप रह गया ।
वह मन ही मन खुश हो गया कि चलो कुछ तो आराम हो गया । वह यह सोच कर मुस्कुरा उठा सुमित के चेहरे पर संतोष की झलक थी , उसने रिक्शे वाले का थोड़ा बोझ जो हल्का कर दिया था ।
उसके होठों पर मुस्कान थी । जाने पूरे दिन की थकावट कहाँ छूमंतर हो गयी थी !
उषा छाबड़ा
१६.२.१६
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