Monday, January 25, 2016




स्वेटर
जनवरी में कड़ाके की ठंड पड़ रही थी । हमेशा की तरह दोनों बहनों ने घंटी बजाई और काम करने के लिए घर के अंदर आ गयीं। बड़ी बहन पिंकी बर्तन मांजने लग गयी और मीनू झाड़ू  लगाने  के लिए अंदर कमरे में आ गयी।  मीनू अभी झाड़ू लगा ही रही थी कि रसोई से  खाँसने की आवाज़ आई।  अंदर कमरे में बैठी  रश्मि ने उसके खाँसने  की आवाज सुनी और पूछ लिया ,  "अरे  पिंकी, तुम इतनी खाँसी क्यों  कर रही  हो, क्या बात है?"  " जी , कुछ नहीं वो  कल से खाँसी हो रही है और थोड़ा सा बुखार भी है." पिंकी ने जवाब दिया।
रश्मि ने कहा ," अरे पिंकी, जब तबीयत ठीक नहीं है तो तुम क्यों आई हो ? अब बुखार भी चढ़ा हुआ है।  तुम वापस चले  जाओ।“ पिंकी ने कहा," नहीं, नहीं ,मैं घर नहीं जाऊँगी , घर पर मैं खाली बैठ कर क्या करुँगी , अभी थोड़ा सा काम कर के मैं चली जाऊँगी।" रश्मि ने पूछा ,"कोई दवाई वगैरह ली है क्या ?"
पिंकी बोली, "हांजी।" तभी मीनू बोल पड़ी ,"  वो एक जगह काम करते हैं न हम, उन्होंने  पीने के लिए सिरप दी है , वही पी है इसने.” तभी रश्मि ने देखा कि पिंकी ने तो  बस एक पतला- सा स्वेटर पहना है।“  रश्मि ने तेज स्वर में कहा, “पिंकी, क्या तुम्हे गर्मी ज्यादा लगती है? इतना पतला सा स्वेटर पहन सुबह काम पर आई हो।“ मीनू बोल पड़ी, "  इसके पास तो यही स्वेटर है और मेरे पास भी।" अब तक रश्मि की निगाह मीनू पर नहीं पड़ी थी। जब उसने उन दोनों को एक साथ देखा तो सन्न रह गई। इन दोनों ने इतने पतले स्वेटर पहने हैं कि वो तो इस सर्दी में  कुछ भी  नहीं हैं।  हे भगवान , वह तो अचंभित रह गयी।  कैसे प्रतिदिन ये दोनों लड़कियाँ घर से निकलती होंगी ,   बुखार में भी यह स्वेटर पहन कर काम करने हिम्मत जुटा कर आती होंगी। एक हम लोग हैं कितने स्वेटर अलमारी में होते हुए भी और खरीद कर अलमारी में रख लेते हैं , इतने कपड़े ओढ़ कर भी  सर्दी का रोना रटते  रहते हैं और कहाँ इतनी छोटी उम्र की लड़कियाँ कभी मुँह से उफ़ नहीं निकालती।  एक बार भी मुँह से माँगा नहीं कि आंटी जी एक स्वेटर हो तो निकाल देना।  घर में कपड़े धोने वाली तारा  भी तो आती है , पर वह तो नहीं झिझकती। फिर ये दोनों कितनी छोटी हैं पर कभी कुछ माँगा ही नहीं! रश्मि को याद आया ,कुछ  महीनों पहले इनके पिता की मृत्यु होने पर भी  इनकी माँ  ने कभी सहायता के लिए कुछ नहीं माँगा , कभी भी पैसे बढ़ाने की बात नहीं की , कभी अपना दुःख  नहीं बताया , शायद माँ  के ही संस्कार थे कि दोनों बेटियाँ कभी  कुछ नहीं माँगती।  रश्मि को जैसे थोड़ी देर बाद कुछ होश आया ।  वह अंदर कमरे में गयी।  उसने अपने बेटे की जैकेट उसे दी जो अब उसके बेटे को छोटी हो गयी थी।  अपने सामने पिंकी को पहनने के लिए कहा।  पिंकी को वह पूरा आ गया था।  उसके चेहरे पर ख़ुशी देखकर रश्मि को भी शांति हुई। पिंकी को देख मीनू भी खुश हो गयी।  पिंकी ने काम निपटाया और चली गयी।  मीनू जब काम ख़त्म करके जाने लगी तो रश्मि ने उसे भी एक पुरानी जैकेट दी ।  मीनू भी खुश हो गयी।  रश्मि ने पूछा, “तुम्हे कैसा लगा था, जब मैंने तुम्हारे सामने तुम्हारी बहन को जैकेट दी और तुम्हें नहीं ?” तो मीनू ने कहा , “आंटी जी, मेरी बहन को बुखार था और में उसकी चिंता कर रही थी ।  जब आपने जैकेट दी तो मुझे उसके लिए बहुत अच्छा लगा।” उसकी आँखों में भी ख़ुशी थी।  अपने  जैकेट की चेंन बंद करे हुए दरवाजे से निकलते वक्त उसने कहा,” थैंक यू ,आंटी जी।“
उषा छाबड़ा
२६.१.१६
इस कहानी को आप मेरी आवाज़ में नीचे दिए लिंक पर सुन सकते हैं
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