Wednesday, January 6, 2016

मुझे कई साल हो गए अपने विद्यालय के बच्चों को पढ़ाते हुए। बच्चों के बीच बच्चा बन जाना , उनसे बातें करना, उनके बारे में जानना, पुस्तकालय से कई बार किताबें ला- लाकर दिखाना , कई बार अपनी लिखी कहानियों , कविताओं की चर्चा करना , पढ़ाने के साथ साथ बाहरी जगत से अवगत कराना आदि। उन्हीं बच्चों के साथ का मेरा संसार । इतने वर्षों का सफ़र , मेरा अनुभव।
नव वर्ष के शुरूआती दिनों में ही मुझे कुछ नया अनुभव प्राप्त हुआ। मेरा मिलना ' बालसहयोग' एवं 'साक्षी' जैसी संस्थाओं के बच्चों से हुआ। अपने द्वारा लिखी गई कविता की पुस्तकें' ताक धिना धिन' जब इन बच्चों के बीच बाँटी तो मन जाने कहाँ उड़ चला। छोटे- छोटे बच्चे जिस प्रकार इन पुस्तकों को पाने के लिए लालायित थे, पढ़ने का प्रयास कर रहे थे , वह देखने लायक था। कितने उत्साह के साथ इन्होंने उन कविताओं को पढ़ा , उसे आप संलग्न चित्रों में देख सकते हैं। इनमें से कई बच्चों ने तो हाथों हाथ इनके चित्र बना के दिखा दिए। ये संस्थाएँ इन बच्चों के लिए कितना कुछ कर रही हैं, जानकर मन को बहुत अच्छा लगा। मैंने पाया कि सारे बच्चे एक समान ही होते हैं। सबमें कोई न कोई गुण है। आवश्यकता है सही समय पर इन्हें पहचानने की, उनके मार्गदर्शन की। ' बालसहयोग' एवं 'साक्षी' द्वारा उठाये गए कदम वाकई कई जिंदगियों को रोशन कर रहे हैं। जानती थी कि ऐसी कई संस्थाएँ समाजसेवा के काम में संलग्न हैं, लेकिन आज इन्हें करीब से देखने का मौका मिला। मन प्रफुल्लित हो उठा।
उषा छाबड़ा










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