कोट
छुट्टी का दिन था। राधिका अपने काम में व्यस्त थी। कंप्यूटर टेबल पर बैठे वह
अपना काम निपटा रही थी। तभी उसे घर आई काम करने वाली सुमि ने कहा , "भाभी जी , आज देखो ना बाहर कितना कोहरा है। इस बार ठंड बहुत जल्दी आ
रही है, लगता है इस बार जबरदस्त ठंड पड़ने वाली है ।अभी तो नवंबर शुरू
हुआ है और सुबह- सुबह इतनी ठंड लगती है ।"
राधिका काम तो कर रही थी पर जैसे ही उसने सुमि की बात सुनी बैठे-बैठे वहीं मुस्कुरा दी और कहने लगी ,"
पिछले साल अधिक सर्दी न पड़ने की वजह से कोई
कोट ही नहीं निकला , चलो इस बार तो सब
काम आ जाएंगे । "
सुमि बोल पड़ी ,"यह भी कोई बात हुई भाभी जी ! हम लोगों का क्या होगा ? इतनी ठंड में पानी में हाथ डालना पड़ता है , कमरे में
भी ठंडे पानी का पोछा लगाना पड़ता
है और चप्पल उतार कर काम करना पड़ता है ।अब आप ही बताओ कड़कती सर्दियों में हमारा
गुजारा कैसे होगा ? आपको अपने कोट की
पड़ी है। " राधिका सोचने लगी ठीक ही तो कह रही है ।सुमि ने तो जैसे उसकी
आंखें खोल दी थी ।अपने बारे में सोचते
-सोचते हम कितना आगे निकल जाते हैं कि दूसरों के बारे में सोचने का वक्त ही नहीं
मिलता । तभी राधिका ने उसे कहा," अच्छा , अब सर्दियों
में चप्पल उतार के काम करने की जरूरत नहीं और थोड़ा गीज़र भी चला दिया करूँगी । चिंता
मत कर। " राधिका सोच रही थी कि इन सर्दियों में बाकियों का क्या होगा!!
उषा छाबड़ा
5.11.16
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